वो एक पागल सी लड़की थी
प्रेमी को खोजा करती थी
किसी पत्ते को उठा
कान पे लगा कर तेज़ तेज़ चिल्ला
"हेल्लो" "हेल्लो" बोला करती थी
पूछती थी....
नदियां, पेड़, पहाड़ सब कैसे है
नया शब्द सुना 'मदर नेचर'....
वो मेरी जैसी है
या मॉडर्न लेडी है
पेड़ की डाल पकडे
यहाँ वहां काले कपडे डाले
पगलिया घूमा करती है
'पगलिया' गली के बच्चे
उसे कहकर हँसते है
वो गली के पीछे
पेड़ के पास जा
रोती है
दहाड़ मार के लिपटती है
फिर गुस्से में घूरती है पलट के बेखबर दुनिया को
जो उसे देख के
सुन के
पगलिया कहती है
वो बातें करती है
कब आएगा मेरा साथी
जो नदिया को सहलायेगा
पहाड़ो को हँसाएगा
पेड़ो को संभालेगा...
खेलेगा उनके संग
संभालेगा हर ज़ज़्बात
एक पागल आया है....
बच्चे उसके पीछे पर
दूर दूर
भाग के बोल रहे थे
पगलिया हेल्लो हेल्लो चिल्लाई
लाल कपड़ो में
पागल हँसा और बोला
पेड़ के पीछे से झांक के
नदियाँ खेल रही है....
पहाड़ों से लड़ रही है...
पेड़ झूम रहे है
जब मैं निकला था सब ऐसे था
अब भी ऐसे ही है...
पर वो खेल रही है इनके नियमों पे
लड़ती है पहाड़ो से कि
वो चुप खड़े क्यों है
पेड़ झूम झूम रोता है हर दिन
पगलिया रोने लगी... क्यों गया छोड़ के
वो लाल कपडे माटी में
लहरा के बोला
मैं जाता हूँ
आऊंगा फिर से मैं....
अब हरा जामा सिलवाउंगा...
तेरे लिए भी लाऊंगा
फिर ये हमे पागल पगलिया नहीं कहेंगे
रंग देख... तुझे ये 'मदर नेचर' का अंग कहेंगे
दोनों हसते रहे....फिर रोने लगे....
प्रेमी को खोजा करती थी
किसी पत्ते को उठा
कान पे लगा कर तेज़ तेज़ चिल्ला
"हेल्लो" "हेल्लो" बोला करती थी
पूछती थी....
नदियां, पेड़, पहाड़ सब कैसे है
नया शब्द सुना 'मदर नेचर'....
वो मेरी जैसी है
या मॉडर्न लेडी है
पेड़ की डाल पकडे
यहाँ वहां काले कपडे डाले
पगलिया घूमा करती है
'पगलिया' गली के बच्चे
उसे कहकर हँसते है
वो गली के पीछे
पेड़ के पास जा
रोती है
दहाड़ मार के लिपटती है
फिर गुस्से में घूरती है पलट के बेखबर दुनिया को
जो उसे देख के
सुन के
पगलिया कहती है
वो बातें करती है
कब आएगा मेरा साथी
जो नदिया को सहलायेगा
पहाड़ो को हँसाएगा
पेड़ो को संभालेगा...
खेलेगा उनके संग
संभालेगा हर ज़ज़्बात
एक पागल आया है....
बच्चे उसके पीछे पर
दूर दूर
भाग के बोल रहे थे
पगलिया हेल्लो हेल्लो चिल्लाई
लाल कपड़ो में
पागल हँसा और बोला
पेड़ के पीछे से झांक के
नदियाँ खेल रही है....
पहाड़ों से लड़ रही है...
पेड़ झूम रहे है
जब मैं निकला था सब ऐसे था
अब भी ऐसे ही है...
पर वो खेल रही है इनके नियमों पे
लड़ती है पहाड़ो से कि
वो चुप खड़े क्यों है
पेड़ झूम झूम रोता है हर दिन
पगलिया रोने लगी... क्यों गया छोड़ के
वो लाल कपडे माटी में
लहरा के बोला
मैं जाता हूँ
आऊंगा फिर से मैं....
अब हरा जामा सिलवाउंगा...
तेरे लिए भी लाऊंगा
फिर ये हमे पागल पगलिया नहीं कहेंगे
रंग देख... तुझे ये 'मदर नेचर' का अंग कहेंगे
दोनों हसते रहे....फिर रोने लगे....
3 comments:
samajh me nahi aayi :(
paglon ki baatein samajh ke pare hoti hai unk bhi aur dussron ke bhi
samjhne layak zarur hoti hai
thoda mushkil ha...kuchh hint hi dedo :)
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