तेरी नज़रो का कपडा पहन लिया है मैंने
अब न शर्माती हूँ
न सकुचाती हूँ
अब बालों को
कस कर बाँध लेती हूँ
कभी खोल के यूँ ही निकल जाती हूँ
तुमने मुझसे जब से कहा
उस रोज़ सुबह मैं बिखरी थी बिस्तर पे
तुम्हे सुन्दर लगी थी
अब नही देखती
हसीं कोई चेहरा
न देखती हूँ
मुझे कौन देखा
तुम अब जो हर वक़्त में कुछ पल चुरा के
देख लेते हो मुझे यूँ ही आते जाते
मेरे गालो पे पड़ते गढ्ढे
अब गहरे हो गए है
तुझे सोच के कई दफे हस लेती हूँ मैं
पड़ पड़ के उनकी गहराई
बढ़ गयी है थोड़ी
जैसे साथ रहते रहते
मैं थोड़ी गाढ़ी हो गयी हूँ तुझमे
तरी हँसी ओढ़ ली मैंने
तेरी नज़रो का एक कपडा पहन लिया मैंने।
वैसे तो ये आपकी इच्छा है इन पक्तियों को आप खुद से कैसे जोड़ते है पर आग्रह करना चाहूंगी कि इसे भौतिकता से हट कर भी देखने का प्रयास करे। शुक्रिया..!!
अब न शर्माती हूँ
न सकुचाती हूँ
अब बालों को
कस कर बाँध लेती हूँ
कभी खोल के यूँ ही निकल जाती हूँ
तुमने मुझसे जब से कहा
उस रोज़ सुबह मैं बिखरी थी बिस्तर पे
तुम्हे सुन्दर लगी थी
अब नही देखती
हसीं कोई चेहरा
न देखती हूँ
मुझे कौन देखा
तुम अब जो हर वक़्त में कुछ पल चुरा के
देख लेते हो मुझे यूँ ही आते जाते
आज एक बाल दिखा
सफ़ेद हो चला है वो
उसे खूबसूरती समझ
ज़ुल्फ़ों में सजा के चल दी मैं
कि तू मुझे रंगो में देखता है
काले उजले का भेद नहीं आता तुझको
तुझे तो बस मेरे गालो का
गुलाबी होना समझ आने लगा है अब
मेरे गालो पे पड़ते गढ्ढे
अब गहरे हो गए है
तुझे सोच के कई दफे हस लेती हूँ मैं
पड़ पड़ के उनकी गहराई
बढ़ गयी है थोड़ी
जैसे साथ रहते रहते
मैं थोड़ी गाढ़ी हो गयी हूँ तुझमे
कि तेरी हँसी ओढ़ ली मैंने
तेरी नज़र पहन ली मैंने
तेरी नज़र पहन ली मैंने
तेरे तरीको से नाता जोड़ा है
तेरी हरकतों से खुद को मोड़ा है
तेरी सख्शियत संभाल ली मैंने
तेरी सख्शियत संभाल ली मैंने
उसमे अपना वजूद जोड़ा है
अब नहीं शर्म आती
तेरी तबियत से अपनी हसरत बदल दी मैंनेतरी हँसी ओढ़ ली मैंने
तेरी नज़रो का एक कपडा पहन लिया मैंने।
वैसे तो ये आपकी इच्छा है इन पक्तियों को आप खुद से कैसे जोड़ते है पर आग्रह करना चाहूंगी कि इसे भौतिकता से हट कर भी देखने का प्रयास करे। शुक्रिया..!!