Monday, 20 October 2014

रूबरू : अपने दिल से (पार्ट २)

तुम्हारे बिना किसी और के साथ टाइम पास नहीं होता . वो तो बस टाइम पास ही होता है. तुम्हारे बिना मैं अकेली ज़्यादा ज़िन्दगी में होती हुँ. बिना तुम्हारे किसी और के साथ ये बिना ख़ुशी के मुस्कराहट सी जीनी पड़ती है. तुम्हारे बिना जब मैं चलती हूँ तो तुम्हारे सिखाये सीख साथ होते है. बिना तुम्हारे कोई और एक मजबूर हाथ लगता है.  तुम्हारे बिना मैं खुल के हसती भी हूँ रोती भी। बिना तुम्हारे कोई और झूठी ज़िन्दगी की तख्ती सा लगता है।  तुम्हारे बिना मैं डरना छोड़ लड़ने की हिम्मत से चलती हूँ। बिना तुम्हारे कोई और मुझे कमजोर और बीमार समझता है। मैं एक लड़की हूँ इसका फक्र है मुझे। तेरी गैर मौजूदगी में कोई और लाख पहल करे बराबरी की... पर तेरे साथ ज़िन्दगी न बिता पाना मेरी नकारी का सबूत दिखता है।  मेरे लड़की होने को मलिन करता है।
 हैं न जाने कितने ही ऐसे ख्याल जो तेरी अहमियत बताते है..... और तेरे होने की। और ना होने की खला भी बताई है मैंने। ये तो उन एहसासों से जुडी कुछ बूंदे है. मेरी दरख्वास्त है अब मुझे बिन तुम्हारे जीने का संदेसा दे दो पर कोई और रहे बिना तुम्हारे, ये फैसला ना तुम करना और ना ही ये हौसला बंधने देना। तुम बिन ये दुनिया मेरी है. मैं अपनी दुनिया में किसी का आना और रहना, इसका दस्तूर ही खत्म करती हूँ.
  अब मैं बस अपनी ज़िन्दगी तुम्हारे नाम बसर करती हूँ।  पता है ज़िन्दगी भर दोनों को आप कर के पुकारा, आज तुम और तेरे सम्बोधन से मैं खुद को और सूफी दुनिया में महफूज़  करती हूँ।

गरिमा मिश्रा


No comments:

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...