Friday, 7 April 2023

बिना तुम्हारे; तुम्हारी बातें

तुम इश्क़ कहो 

जात मेरी हो

तुम नाम जो लो 

शक्ल मेरी हो 

मुझे इश्क़ है 

जो मोहब्बत से आगे 

इबादत से पहले सरगर्म-ए- सफ़र कहीं

सबने कहा ऑब्सेशन है 

ज़िद है 

इसे प्यार नहीं कहते 

जिसकी सारी ज़िद ना मान पाऊँ 

शिकायतें रहे 

वहाँ प्यार नहीं रह सकता 

मान भी गई मैं । 

इश्क़ की जात क्या 

ये जान ना सकी 

तो मान ही गई मैं 

इश्क़ मोहब्बत प्यार में क्या फ़र्क़ है 

इसका कोई पैमाना पता नहीं 

बस मुझे एक एहसास ने ज़िंदा रखा है 

कई दिनों से 

ये पता है मुझे

और ये पढ़ाई नहीं कॉलेजों की

जो मैं फेल हो जाऊँ 

वो जिससे हुई है मोहब्बत 

उसने कई दफ़े नकारा है मुझे 

फिर भी एहसास ज़िंदा रहता है वैसे ही।

हाँ, शिकायतें हैं

रोना शिकवा ज़िद ग़ुस्सा 

और तमाम वो नख़रे हैं 

जो आते है मुझे करने 

और नहीं भी आते हैं।

पर उससे इश्क़ है मुझे। 

मैं उससे रूमी की लिखी इश्क़ की आयतों सरीखी

ग़ालिब का इज़हार 

कलंदर का कलाम

या पाश का जुनून

इमरोज़ के बूरूस का घुमाव 

या कुंवर नारायण का नयापन 

एक तवायफ़ की नज़ाकत 

एक हमउम्र सा राज़दार 

सबसे महफ़ूज़ जगह 

सबसे मुश्किल में मेरा हाथ 

अंधेरों में मेरा साथ 

तबाह भी मैं

बेपनाह भी मैं 

स्याह में उजाले का सबब भी मैं

इश्क़ का नाम लो और शक्ल भी मैं 

बड़ी ऊँची उड़ान और ख़्वाब है ये 

पर ये भी मैं। 

उसके साथ उसके इश्क़ में बस मैं 

मेरे सिवा कोई दोस्त ना हो

इतनी हिम्मत बख्शे ख़ुदा 

कि सब हो 

और मेरे सिवा कोई और ना हो।

हाँ माँगती हूँ, चाहती हूँ 

है भी मेरे पास

इस मोहब्बत में रुसवाई भी खूब है 

वो मेरे हिस्से आ गई कब से 

अब इश्क़ भी महके 

और मुस्कुरा उठे वो

मैंने सिनेमा देख के सीखा हो 

किताबें पढ़ के भरम पाला हो

ऐसी दीद नहीं 

ऐसा नायक नहीं 

ऐसा इतिहास नहीं।

जब मैं देखूँ  इश्क़ को 

खुली आँखों या बंद पलकों में 

रुतबा वैसा ही रखूँ 

जो कायनात में ना हो। 

सबसे ऊँचा मक़ाम इश्क़ का हो 

उससे और अपनों से भी 

फिर इंसानों की इस दुनिया में 

जब इश्क़ का नाम लो 

तो शक्ल मेरी ही हो। 


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