Sunday, 30 January 2022

ये मेरे ख़्याल: खोखली बातें

 ज़रूरत ना हो तो 

अब कोई पूछता नहीं

ना दोस्त, ना प्यार 

ना घर ना दरबार 

अकेले तो रही कई सालों से 

अकेली आज हुई हूँ 

ख़ालीपन का सबब अब सोख चली हूँ 

सुनती रहती हूँ बेहतर दिखने का क़िस्सा

एक कामगर और मुस्कान का हिस्सा 

जो बन गयी तो मशहूर हो जाऊँगी 

सबमें जानी जाऊँगी 

पहचानी जाऊँगी 

जो आज सब है तो अकेली हो गयी हूँ

मेरे घर के बाहर का वो लंगड़ा कुत्ता 

और मैं एक जैसे हो गयी हूँ

वो रहता है अक्सर यहीं

सबने प्यार से रख लिया है

बातों में याद कर लेते हैं 

आते जाते दुलार कर लेते हैं

ना भौंकता है ना काटता है

रोटी दे के 

कभी कभी इसका भी ज़िक्र कर लेते हैं

मैं भी गर ना काटूँ और भौंकूँ 

तो बुरी नहीं किसी के लिए 

क्या पता ये वक़्फ़ा ही कुछ ऐसा है

फ़िज़ा ही अज़ाइम-परस्त बन गयी है 

या फिर साथ अब ज़रूरत से बनने लगे हैं

या मैं पड़ गयी कमजोर 

कि तेरे, उसके, तुम्हारे, उनके, आपके 

बिना पूछे, बिना पुचकारे

बिना दुलारे 

अकेली पड़ गयी हूँ 

अकेली तो बहुत दिनों से थी

पर अकेलापन ने अब जा कहीं घेरा है मुझे

इन ज़रूरतों के रिश्तों में अपने पाँव खोजती हूँ 

लफ़्ज़ नापती हूँ

बैठक बना रही हूँ 

कि जब तक ज़िंदा हूँ 

चलने की बाबत कुछ कहना तो पड़ेगा ही। 

# अज़ाइम-परस्त :  योजनाकर्ता, इरादों और योजनाओं का पुजारी






Tuesday, 4 January 2022

इंतेहा बीतेगी कभी…

 मुझे प्यार करना नहीं आया 

जो जानती थी वो समझाना नहीं आया 

जो समझा उसे जताना नहीं आया 

जो मानती थी उसे बताना नहीं आया 

जो भीतर दौड़ रहा था 

सोच में, एहसास में, धड़कनों में 

वो इतना हल्का था

झोंकों में ही बिखर सकता था 

उसे सम्भालना नहीं आया 

मुझे इश्क़ का पता दे दो कोई 

मुझे ऐतबार, इनकार और रूठने का सबब भी नहीं आया 

मोहब्बत मेरे मन में थी 

दिल, मन, दिमाग़ 

खून, नसें, अंतड़िया पता नहीं क्या कहते हो तुम इसे 

पर जहां भी थी 

उन्हें ना मारना आया 

ना जगाना आया 

ना बचाना आया 

बस हर बार आंसू धकेल 

आँखें कुछ कहती तो है 

पर मुझे उसका अनुवाद भी नहीं आया 

एक तमन्ना थी 

कि इश्क़ से जानी जाऊँ 

जब दफ़्न होऊँ 

तो तेरे नाम से पुकारी जाऊँ

नहीं पता 

बस ये सोच की पतंग है जो उड़ती रहती है 

या मेरा सच 

जो भी था मेरे अंदर जन्मा ज़रूर है

उड़ान भर 

पूरे जिस्म को हिला देता है 

पर उसे बताना नहीं आया 

इस दुनिया के काबिल नहीं मैं 

मुझे ना हिसाब आया 

ना घर बनाना आया 

ना किराया देना आया 

ना दरवाज़े पर रहना मंज़ूर 

ना तेरी शर्त पर ऐतबार आया 

बस उड़ान थी इस पतंग की 

इश्क़ क्या, बात क्या, साथ क्या 

मुझे हमराज़ भी ना बन्ना आया 

ना गुमान करना आया

ना इश्क़, ना इबादत 

ना तुम ना मैं 

ना वो, जिसने दिया ये सब 

ना ये लफ़्ज़ 

बस दिल एक ख़ाक ज़र्द लम्हा छिपा आया


ये लिख कर सोच रही हूँ कि मेरी ये उदास पंक्तियाँ अब इस दुनिया को मौक़ा दे देगी उसे तौलने का। लो प्यार किया और अब लफ़्ज़ भी अपना मक़ाम ना पा सकेंगे क्यूँकि डर है कि मेरे इश्क़ की गफ़लत में वो हर बार की तरह गर्दिश में  ना आ जाए। तो समझो तुम उसे कुछ भी कहने से पहले कि ये इश्क़ मेरा है, मौजूँ मेरा है, उससे मुलाक़ात, रोमांच और तकरार मेरा है। वो जब इसमें होता है तो मैं और वो दोनो दुखी हो जाते है। और जब मैं होती हूँ तो लफ़्ज़ होते हैं, एहसास होता है और वो मेरा होता है। 

मेरे इश्क़ में उसको मत लाओ। ना तुम आओ ना वो आए, मुझे बस इश्क़ में मेरा होने होने दो, उसे मेरा होने दो। 

Monday, 3 January 2022

नए साल की बात

 

जनाज़े को बारात समझ के नाचने से घर में ना ही नया सदस्य आएगा और ना ही जनाज़ा ख़ुशी की फुहारों में तब्दील होगा।

नया साल आ गया है। बीते साल का अवलोकन विवेचना के साथ आने वाले वर्ष की शुभकामनाओं का ताँता लग गया ३१ दिसम्बर से अभी तक। मैंने भी अपने क़रीबियों को शुभकामनाएँ भेजी और स्वीकार भी की।आशीर्वाद लिए बड़ों से और छोटों के साथ प्यार और सौहार्द भी बाँटा। पर हर एक शब्द और उसके साथ के एहसास के साथ एक टीस उठती रही।पिछले वर्ष को याद करूँ तो जो बड़े घटनाक्रम नज़र सामने दौड़ पड़ते है उसने कोरोना से संक्रमित हो के अपनी जान गँवाने वालों की संख्या, वो तस्वीरें जो गंगा किनारे की हम सब के सामने आयी और वट्सऐप पर घूमती रही कई दिनों तक। वो लोग जो संख्या बन कर रह गए और सरकारी खातों में संख्या बनने की भी क़िस्मत ना पा सके। किसान आंदोलन और उससे उभरते कई नायाब उदाहरण, सवाल, जज़्बात और नयी परिभाषाएँ। नागालैंड में कफ़न में लिपटे लोगों की लाशें जो सिर्फ़ सॉरी के साथ दफ़्न हो गए। या नए साल का तोहफ़ा सुल्ली और बुल्ली डील्ज़ के नाम के साथ। मजहबी दंगे, कड़वाहट, नफ़रत तो आइसिस के क़त्ल ए आम और बलात्कार की खबरों जैसे हो गए है जिसमें हम आप तब तक रुचि नहीं लेंगे जब तक हमारा आपका कोई सगा इसकी बलि नहीं चढ़ जाता।

बस हम आप आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाए, फ़ेक न्यूज़ के डाकिया बने दिहाड़ी करें और शाम को अपनी कमाई और सुकून के लिए ठेकेदारों के सामने बैठ जाए और वो आँखों पर धर्म जाति और झूठ का रंगबिरंगा चश्मा पहना आपकी सामंती सोच को उस एक बक्सेनुमा चलचित्र से ज़हर फेंक खुश कर दे। इस बार की सारी शुभकामनाएँ हृदय से पूरी नहीं थी। ग्लानि से भरी थी की कुछ कह नहीं रही और किस मुँह से हृदय से कोई भी दिन माना सकते है हम?

पिछला साल मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर ख़ुशनुमा नहीं रहा और कार्यस्थल पर देश जैसी ही स्थिति प्रतिबिम्बित होती नज़र आयी। बहुत कुछ है जो मैं इस वक़्त मेरे शब्दों में प्रदर्शित नहीं हो रहे है। युवकों के साथ मज़ाक़ कर रही सरकारों को हम आप ये छूट दे रहे हैं ये भूलिएगा नहीं। लोकतंत्र को शर्मसार  कर रहे हर प्रसारण पर प्रश्न ना पूछ कर मैं और आप इस देश को गर्त में धकेलने में उतने ही भागीदार है जितने वो जो सक्रिय भूमिका निभा रहे है।

मैं आज बहुत दिन बाद इस ब्लॉग पर शब्दों को उड़ेल रही हूँ। भाव इतने है कि शब्द बड़बड़ा रहे हो जैसे बस। मैं बीते साल दिवाली भी वट्सऐप पर ही मना पायी। इस वसुधैव कुटुम्बकम वाली शिक्षा देने वाला देश आज किस ख़ुशी में झूम रहा जैसे उसे ही नहीं पता हो। जनाज़े को बारात समझ के नाचने से घर में ना ही नया सदस्य आएगा और ना ही जनाज़ा ख़ुशी की फुहारों में तब्दील होगा।

मैं आज अब फिर से इस नए वर्ष की बधाई दे रही हूँ। आप कहते रहिए तार्किक होने की ख़ुशफ़हमी में झूमते हुए कि ये अंग्रेजों का है, हमारा हिंदुओं का मार्च में नया साल आता है, फिर भी दिन भर हैपी न्यू ईयर कहते बिता दिया होगा। शुक्र है यहाँ सिर्फ़ अंग्रेजों से भिड़ंत है मुस्लिम कैलेंडर नहीं है कोई। १२ महीने के पहले माह के शुरुआती दिनों में नकारात्मक बात नहीं कर रही हूँ बस साझा कर रही हूँ जो सच है हम सबका।

दिल से आप सबको शुभ और प्रसन्नता पूर्ण बधाई कि इंसान बने रहने का प्रयास करें। देखे कि आपकी सचाई क्या है? इससे ज़्यादा गर्त में नहीं जा सकते व्यक्तिगत तौर पर भी और सामूहिक तौर पर भी। सुल्ली डील में किसी मुस्लिम महिला की तस्वीर नहीं, हमारे घर की परवरिश की नग्न तस्वीर है जिसे हमने दिन रात दिहाड़ी कर पूरा करने में जान झोंकी है। शुभकामना कि हम उठें, एक दूसरे को उठाएँ। कि मैं किसी जान को इस दुनिया में लाने से पहले घबराऊँ नहीं। मैं मानसिक तौर पर बेहतर बन्ना चाहूँ इस दुनिया में जीने कि लिए। पढ़िए, बहुत कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहे है कुछ लोग। कुछ नाम वाले कुछ बेनाम है। उनका काम है हम आप को बस उन्हें पढ़ना है सुनना है। मत डराइए इन कपड़ों, पहनावों, रंग, सूरत, खान पान से,  इनसे तो कम से कम ना मारो।

मैंने आज जो लिखा है इसे दुबारा पढ़ कर ग़लतियाँ सुधारूँगी नहीं। आप पढ़िए और मुझे मेरी गलती बताइए। वो फ़ेक न्यूज़ पढ़ कर आगे ज़हर फैलाने से अच्छा है मैं आप मेरी कमियों पर बात कर ले और एक दूसरे का हाल चाल ले लें।

कहने हो हम भेंड़ नहीं है, जो सिर झुकाएँ चल पड़े है बस चरवाहे की पुकार पर।और कहने को हम मनुष्य है, बुद्धिधारी मनुष्य। यक़ीन मानिए आप इतिहास पर मार काट कर रहे है लेकिन आप कल के लिए एक घिनौना भयावह और ना बताने वाला इतिहास लिख रहे है।

भागीदारी तय कीजिए और जगह भी। दिहाड़ी और अपने वेतन पर भी विचार कीजिएगा।  ईश्वर और प्रकृति को आपकी नहीं, आपको ईश्वर और प्रकृति की ज़रूरत है और पड़ती रहेगी।

मुस्कुराते रहिए । 🙏🏽😊

(मैं भी सीख रही हूँ)

 

 

हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...