Tuesday, 26 December 2017

जब लफ्ज़ न बयां कर पाए
उस लम्हे में मोहब्बत की है,
वादा करने से कतराता हूँ
वादाखिलाफी से बगावत की है,
जुदाई में बेवफाई का रोष नहीं
इसलिए जाते वक़्त रुस्वाई नहीं की है। 

Monday, 25 December 2017

'तुम दोनों'

मेरे होने से तुम्हे कुछ शिकायत है क्या
अब बात में कोई जिरह नहीं होती   
मैं हाल पूछती हूँ, तुम खबर पूछते हो
अब मिलने की गुजारिश नहीं होती
तुमसे बात से पहले दिल टटोलता है खुद को
कई दफे गहरी सांस लेता है
जैसे पूछता हो अंदर ही
कि संभाल लोगे न?
ये गहरी साँसे पहले भी होती थी
पर मुस्कान और गुफ्तगू के लिए,
अब तो कोई जवाब ही नहीं होता।
कुछ सवाल में सवाल जुड़ जाते है
कहने को जवाब मिल जाते है
ऐसी बातें करने में भी
शायद किसी रिश्ते ने  सिफारिश लगाई होगी।
वरना आजकल तो पहले की तरह
उंगलियां नहीं थिरकती मेरे नाम पर।

एक काम करते है....
जब मैं पहली बार मिली थी
तो तुम खुश थे
तो चलो फिर से अजनबी  बन जाते है
ये मजबूरी नहीं भाती मुझे
तुमसे फिर से मिलना चाहती हूँ
फिर से उन्ही बाहों में लिपट के
सो जाना चाहती हूँ।
और तुमसे जैसे पिछली बार
साल की आखिरी रात को मिली थी
वैसे ही मिलना चाहती हूँ।
बिना सोचे कि तुम थके होंगे
तुम्हारे हाथो की थकान से अनजान
पूरी रात वैसे ही लिपटना चाहती हूँ।
दाढ़ी के बालों से चिढ के
अपना हाथ तुम्हरे सीने से रगड़ना चाहती हूँ
तुम्हरी थाली में ही आधा तिहाई खाना खा के
कही तो बाहर भाग जाना चाहती हूँ
तुमसे डाट खा के
तुम्हारे ही पेट पे सोना चाहती हूँ
उन नाखूनों, सर के बालों की रुसी,
पैसों के लिए अलग से हम दोनों का हिसाब
उधारी और वापस कर देने का वादा
मेरी पढाई का कुछ पता न होना
मेरे रिजल्ट पे खूब खुश होना
मुझे अकेले ज़माने से जीतने को छोड़ देना
मेरे हारने पे बस चुप रह जाना
मेरे फिर से उठने पे मुझे जाने देना
मैं फिर से बिना कुछ सोचे
वही 'गम्मू' होना चाहती हूँ।

ये जो मेरा 'तुम' हो
वो तुम दोनों हो
ऊपर लिखा सब तुम दोनों हो
दोनों ही मुझे एक दूजे के लिए
छोड़ रहे है, छोड़  नहीं भी रहे है।
तुम दोनों चाहते हो
मैं एक को छोड़ दूजे के साथ चल पडूँ।
पर जब पिछली बार
तुम्हे छुआ तो
ढलती उमर की लचक और कमज़ोरी दिखाई दी
आँखों में मुझसे उम्मीदें दिखाई दी
 तो लगा कि तुम अब वो नहीं
मुझे 'मैं'  से अब 'तुम' बनना पड़ेगा
अपने कंधे को मजबूत बना
उन पर तुमको आराम देना होगा
और तुम जो अब भी जवान हो
बस साथ देना मेरा
पर तुम दोनों खफा से हो
मैं तुम दोनों के जानिब हर कदम आगे बढ़ रही हूँ
मुझसे मेरा हाथ मांगो
पर इसे काटो नहीं
वरना कही मेरा कन्धा टूट जायेगा
कही मेरी मेरुदंड झुक जाएगी
बहुत काम बाकी है
अपाहिज हो काम करना मुश्किल हो जायेगा।
सीखा तुमसे है ज़िन्दगी के कई फलसफे
बिना तुम्हारे  इस कविता का शीर्षक
बनाम हो जायेगा।






हमको घर जाना है

“हमको घर जाना है” अच्छे एहसास की कमतरी हो या दिल दुखाने की बात दुनिया से थक कर उदासी हो  मेहनत की थकान उदासी नहीं देती  या हो किसी से मायूसी...