Thursday, 13 October 2016

कुछ कटु है कुछ असंयम 
मधुभाषी भी तरकश में है
कौन सा तीर चलाऊ अब मैं
सामने युद्ध में लक्ष्मण भी है
विभीषण भी है।

 दुनिया में तमाम उलझने  बगावत सितम के किस्से और ज़ुल्म हैं  मेरे अपने इश्क़ और इंतज़ार की नज़्मों ने जगह रोक रखी है  हैरान हूँ अपनी दीद पर  ...